ब्रह्मांड की अजीब ओ गरीब चीजें व रहस्य। | ऐसी चीजें जो आपको चौंका दें।
यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारा यूनिवर्स बहुत विशाल है जिस में न जाने कितने रहस्य भरे हुए हैं। जैसे-जैसे हमारी तकनीक और अच्छी होती जा रही है, वैसे ही हम यूनिवर्स के रहस्य को सुलझा पा रहे हैं। हालांकि तकनीकें और एडवांस होने के साथ यूनिवर्स के हमारे पुराने कॉन्सेप्ट भी बदल रहे हैं। वैज्ञानिकों को यूनिवर्स पर अध्ययन करते हुए सैकड़ों साल हो चले हैं। पर आज भी ऐसे रहस्य हैं जिनके सामने आते ही उनकी दिन रात की नींद उड़ जाती है। ऐसा होना भी आम है क्योंकि यूनिवर्स बड़ा ही इतना है और हम उसके एक छोटे से कोने में ही रहते हैं। देखा जाए तो हमारी धरती जहन हम रहते हैं, इसी यूनिवर्स की एक छोटी सी चीज भर है। पर यह भी हमें आज तक समझ नहीं आई है।
नमस्कार दोस्तों मैं आपका स्वागत करता हूं SCYMYSTERY के इस नए एपिसोड में। जिसमें मैं आपको यूनिवर्स की 9 ऐसी फैक्ट बताऊंगा जिन्हें सुनकर आपके पक्का होश उड़ जाएंगे। यह फैक्ट आपको किसी किताब में भी शायद ना मिले। इसलिए आप आर्टिकल को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढें।
हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर एक वर्ष 365 दिन का होता है। पर ब्रह्मांड में एक गैलेक्टिक वर्ष भी होता है। जिस तरह पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन लगते हैं, तब जाकर 1 साल बनता है। ठीक उसी तरह हमारे पूरे सौरमंडल को हमारी आकाशगंगा का एक चक्कर लगाने में जो समय लगता है उसे ही गैलेक्टिक वर्ष या गैलेक्सी ईयर कहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे सौरमंडल को आकाशगंगा का एक पूरा चक्कर लगाने में 23 करोड़ साल लगते हैं। यह इतना ज्यादा है कि हमारी पूरी मानव जाति अपने जीवन काल में भी एक गैलेक्टिक परिक्रमा नहीं कर सकती है। आखरी बार जब हमारे सौरमंडल ने अपने इस चक्कर को पूरा किया था तब मानव जाति अपने अस्तित्व की खरीद भी नहीं थी। वास्तव में उस समय डायनासोर जीवित थे। दोस्तों यह सोचने में कितना अजीब लगता है कि हमारी आकाशगंगा कितनी बड़ी है पर देखा जाए तो यह अभी भी हमारे ब्रह्मांड का एक टुकड़ा भर ही है। अगर आप आकाशगंगा के हमारे ब्रह्मांड के एक पूरे चक्कर को निकालने बैठेंगे तो शायद कभी सो भी नहीं पाएंगे।
जब आप स्कूल में थे तो आप को सिखाया जाता था कि 1 दिन में 24 घंटे होते हैं। यह कुछ हद तक तो सही है। पर एक सोचने वाली बात है कि भला 1 दिन में एकदम सटीक 24 घंटे ही क्यों हैं, क्यों नहीं है एक या दो सेकंड आगे पीछे हो सकते हैं। NASA की मानें तो पृथ्वी का रोटेशन हर सौ सालों में धीमा होता रहता है। इसका मतलब है कि हमारे दिन ठीक 24 घंटे के नहीं है। पृथ्वी को एक रोटेशन में वास्तव में 24 घंटे और 2.5 मिली सेकंड लगते हैं। देखा जाए तो यह 2.5 मिली सेकंड कोई बड़ी बात नहीं लगती है पर धरती अरबों सालों से इसी तरह घूम रही है। जब डायनासॉर्स राज करते थे तो धरती पर एक दिन 23 घंटों का होता था। आने वाले अरबों सालों में पृथ्वी पर एक दिन शायद 25 से 26 घंटों का हो सकता है।
जी हां आपने सही सुना अंतरिक्ष में एक शराब का बादल भी मौजूद है। जिन लोगों को अल्कोहल यानी कि शराब पीना पसंद है, वह कभी ना कभी सपने में सोचते तो जरूर होंगें की काश इस दुनिया में शराब के बादल होते तो यह दुनिया कितनी अच्छी लगती। ऐसे सपने देखने वालों को अंतरिक्ष ने निराश नहीं किया है। Aquila नाम के तारामंडल में इथाइल अल्कोहल का एक विशाल बादल मौजूद है। यह कोई साधारण बादल नहीं है। यह इतना बड़ा है कि आपके सपने में भी कभी फिट ना बैठे। दरअसल यह बादल हमारे सौरमंडल से 1000 गुना बड़ा है। पर अफसोस यह विशाल शराब का बादल शराबियों के लिए सपना ही रह जाएगा क्योंकि यह पृथ्वी से 10000 प्रकाश वर्ष दूर है। यहां लाइट को भी पहुंचने में 10000 साल लग जाएंगे। जब तक भविष्य में स्पेस ट्रैवल की कोई तकनीक नहीं बन जाती तब तक यह बादल आपको बस सपने में ही दिखाई देगा।
जब आप अंतरिक्ष के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि अंतरिक्ष दिखता कैसा है, महसूस कैसा होता है और इसमें क्या सुनाई देता है। पर कभी आपने इस पर ध्यान नहीं दिया होगा कि अंतरिक्ष की गंद कैसी है? क्या इसमें खुशबू आती है या बुरी लगती है। वैसे तो अंतरिक्ष में कोई भी अंतरिक्ष यात्री अपना स्पेस सूट नहीं उतारता है और ना ही ऐसा करने की कोशिश करता है क्योंकि अगर करता भी है तो वह हमें गंध बताने के लिए जिंदा ही नहीं रहेगा। हमें अंतरिक्ष की गंध का पता केवल और केवल स्पेस यात्रियों के सूट और उनके औजारों से ही पता चलता है। जब उनकी जांच की जाती है तो तभी उनमें से आने वाली गंध का बताया जाता है। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अपनी एक रिसर्च में कहा है कि आकाशगंगा का केंद्र एक स्ट्रॉबेरी की तरह महकता है। मतलब कि जो खुशबू किसी बेरी में आती है वही हमारी आकाशगंगा के केंद्र में आती है। इसके पीछे तर्क यह है कि आकाशगंगा के केंद्र इथाइल फॉर्मेट बनती है जो खुद इन मीठी बेरीस इसमें भारी मात्रा में पाई जाती है।
दोस्तों बर्फ और आग दोनों एक दूसरे के ऑपोजिट हैं, पर हमारे अंतरिक्ष में एक ऐसा एक्सप्लेनेटरी यानी परदेसी ग्रह भी है जहां वास्तव में बर्फ जलती है। यह सोचने में ही बड़ा अजीब लगता है कि भला बर्फ जल कैसे सकती है। पर इस विचित्र ग्रह पर ऐसा ही होता है। Gliese 436 b नाम का यह परदेसी ग्रह हमसे 33 लाइट ईयर्स दूर है। इस ग्रह पर बर्फ हमेशा जलती ही रहती है। जिस वजह से इस ग्रह पर हमेशा एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। वैज्ञानिकों की मानें तो इस ग्रह पर बर्फ जलने का कारण है। यहां पर पानी का एक अजीब सी स्टेट में रहना जिसे कोई जानता ही नहीं। जिस वजह से ही Gliese 436 b की सतह पर बर्फ हमेशा जमी हुई रहती है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस ग्रह की सतह का तापमान 440 डिग्री सेल्सियस होने के बाद भी बर्फ ठोस रहती है और जलती हुई दिखाई पड़ती है।
ब्लैक होल हमेशा उन विशालकाय तारों से बनते हैं जो अपनी ऊर्जा खत्म करने के बाद अपने ही ग्रेविटी के कारण कलेप्स हो जाते हैं और सुपरनोवा एक्सप्लोजन करने के बाद यूनिवर्स की सबसे अजीब चीज ब्लैक होल में बदल जाते हैं। ब्लैक होल बनने के लिए किसी भी तरे को हमारे सूर्य से कम से कम 10 गुना ज्यादा वजनी होना चाहिए। नहीं तो वह कभी भी ब्लैक होल नहीं बन सकता है। हमारा सूर्य कभी भी ब्लैक होल नहीं बन सकता तो फिर हमारी पृथ्वी की गिनती ही क्या है। पर अगर आप फिर भी पृथ्वी को ब्लैक होल बनाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको इसे तब तक दबाना पड़ेगा जब तक कि किसी छोटे से कंचे जितनी ना हो जाए। पर ऐसा करना प्रैक्टिकली असंभव है।
हम अपनी उम्र तो आसानी से बता सकते हैं। यहां तक कि कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिक पृथ्वी पर पाई जाने वाली किसी भी पुरानी से पुरानी चीज की डेट भी आसानी से बता पाते हैं। पर जब बात यूनिवर्स की आती है तो एक बहस का मुद्दा बन जाता है। वैज्ञानिकों को आज भी भ्रमांड की उम्र को लेकर पूरी सहमति नहीं है कि आखिर इस की असल उम्र क्या है। कुछ वैज्ञानिक बिग बैंग के आधार पर इसे 14 अरब साल पुराना मानते हैं और पृथ्वी को 4.50 अरब साल पुराना। इस आधार पर ही चले तो इस यूनिवर्स की शुरुआत 14 अरब साल पहले ही हुई होगी। लगभग 13 अरब साल पहले आकाशगंगाऔं का निर्माण शुरू हुआ और 5 अरब वर्ष पहले हमारे सौरमंडल का जन्म हुआ। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी जो कि 4.50 आरब साल की है, उस पर हम इंसानों को आए हुए 70000 साल ही हुए हैं। अगर इसकी तुलना हम यूनिवर्स से करें तो यह कुछ भी नहीं है। अगर यूनिवर्स की उम्र को 1 साल मान ले तो हमारा सौरमंडल सिर्फ 1 महीने पुराना ही माना जाएगा, जिसमें हमारा अस्तित्व सिर्फ 1 सेकेंड से कम का ही है।
हमारा यूनिवर्स यानी ब्रह्मांड बहुत ही बड़ा है। ये बड़ा है कि किसी की कल्पना में भी नहीं समा सकता। ऐसे विशाल यूनिवर्स में कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें हम खोज नहीं सके हैं। यह चीजें हमें दिखाई नहीं देती है और ना ही हमारे वैज्ञानिक उपकरणों और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से पकड़ में आती हैं। वैज्ञानिकों ने इन्हीं रेडियो, इंफ्रारेड और एक्स-रे तरंगों के द्वारा ही यूनिवर्स की कई बड़े राज खोले हैं। हमारे यूनिवर्स में ऐसी भी कोई जगह है जहां पर हम इन तरंगों को कभी भेज नहीं सकते हैं। डार्क मैटर भी इन्हीं में से एक है, जो ना तो किसी तरह की तरंग को सकता है और ना ही छोड़ता है। इसे किसी भी तरह से देखा ही नहीं जा सकता। हम तरंगों को लाइट की स्पीड से ज्यादा तेज भी नहीं भेज सकते तो इस वजह से कई ऐसे ऑब्जेक्ट्स हैं जिन्हें हम अपने मानव जाति के काल में शायद कभी देखी ना पाए। कहने का मतलब है कि हमारा विज्ञान अभी इतना पीछे हैं कि यूनिवर्स के कई बड़े राज दबे के दबे ही रह जायेंगे। पर हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। आने वाले समय में विज्ञानिक शायद इतनी तरक्की कर ले कि भ्रमांड के और कई बड़े-बड़े राज वह आसानी से उजागर कर सके।
नमस्कार दोस्तों मैं आपका स्वागत करता हूं SCYMYSTERY के इस नए एपिसोड में। जिसमें मैं आपको यूनिवर्स की 9 ऐसी फैक्ट बताऊंगा जिन्हें सुनकर आपके पक्का होश उड़ जाएंगे। यह फैक्ट आपको किसी किताब में भी शायद ना मिले। इसलिए आप आर्टिकल को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढें।
1.Galactic Years
हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर एक वर्ष 365 दिन का होता है। पर ब्रह्मांड में एक गैलेक्टिक वर्ष भी होता है। जिस तरह पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन लगते हैं, तब जाकर 1 साल बनता है। ठीक उसी तरह हमारे पूरे सौरमंडल को हमारी आकाशगंगा का एक चक्कर लगाने में जो समय लगता है उसे ही गैलेक्टिक वर्ष या गैलेक्सी ईयर कहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे सौरमंडल को आकाशगंगा का एक पूरा चक्कर लगाने में 23 करोड़ साल लगते हैं। यह इतना ज्यादा है कि हमारी पूरी मानव जाति अपने जीवन काल में भी एक गैलेक्टिक परिक्रमा नहीं कर सकती है। आखरी बार जब हमारे सौरमंडल ने अपने इस चक्कर को पूरा किया था तब मानव जाति अपने अस्तित्व की खरीद भी नहीं थी। वास्तव में उस समय डायनासोर जीवित थे। दोस्तों यह सोचने में कितना अजीब लगता है कि हमारी आकाशगंगा कितनी बड़ी है पर देखा जाए तो यह अभी भी हमारे ब्रह्मांड का एक टुकड़ा भर ही है। अगर आप आकाशगंगा के हमारे ब्रह्मांड के एक पूरे चक्कर को निकालने बैठेंगे तो शायद कभी सो भी नहीं पाएंगे।
2.Earth's Rotation
जब आप स्कूल में थे तो आप को सिखाया जाता था कि 1 दिन में 24 घंटे होते हैं। यह कुछ हद तक तो सही है। पर एक सोचने वाली बात है कि भला 1 दिन में एकदम सटीक 24 घंटे ही क्यों हैं, क्यों नहीं है एक या दो सेकंड आगे पीछे हो सकते हैं। NASA की मानें तो पृथ्वी का रोटेशन हर सौ सालों में धीमा होता रहता है। इसका मतलब है कि हमारे दिन ठीक 24 घंटे के नहीं है। पृथ्वी को एक रोटेशन में वास्तव में 24 घंटे और 2.5 मिली सेकंड लगते हैं। देखा जाए तो यह 2.5 मिली सेकंड कोई बड़ी बात नहीं लगती है पर धरती अरबों सालों से इसी तरह घूम रही है। जब डायनासॉर्स राज करते थे तो धरती पर एक दिन 23 घंटों का होता था। आने वाले अरबों सालों में पृथ्वी पर एक दिन शायद 25 से 26 घंटों का हो सकता है।
3.शराब के बादल।
जी हां आपने सही सुना अंतरिक्ष में एक शराब का बादल भी मौजूद है। जिन लोगों को अल्कोहल यानी कि शराब पीना पसंद है, वह कभी ना कभी सपने में सोचते तो जरूर होंगें की काश इस दुनिया में शराब के बादल होते तो यह दुनिया कितनी अच्छी लगती। ऐसे सपने देखने वालों को अंतरिक्ष ने निराश नहीं किया है। Aquila नाम के तारामंडल में इथाइल अल्कोहल का एक विशाल बादल मौजूद है। यह कोई साधारण बादल नहीं है। यह इतना बड़ा है कि आपके सपने में भी कभी फिट ना बैठे। दरअसल यह बादल हमारे सौरमंडल से 1000 गुना बड़ा है। पर अफसोस यह विशाल शराब का बादल शराबियों के लिए सपना ही रह जाएगा क्योंकि यह पृथ्वी से 10000 प्रकाश वर्ष दूर है। यहां लाइट को भी पहुंचने में 10000 साल लग जाएंगे। जब तक भविष्य में स्पेस ट्रैवल की कोई तकनीक नहीं बन जाती तब तक यह बादल आपको बस सपने में ही दिखाई देगा।
4.हमारे यूनिवर्स की गंध कैसी है।
जब आप अंतरिक्ष के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि अंतरिक्ष दिखता कैसा है, महसूस कैसा होता है और इसमें क्या सुनाई देता है। पर कभी आपने इस पर ध्यान नहीं दिया होगा कि अंतरिक्ष की गंद कैसी है? क्या इसमें खुशबू आती है या बुरी लगती है। वैसे तो अंतरिक्ष में कोई भी अंतरिक्ष यात्री अपना स्पेस सूट नहीं उतारता है और ना ही ऐसा करने की कोशिश करता है क्योंकि अगर करता भी है तो वह हमें गंध बताने के लिए जिंदा ही नहीं रहेगा। हमें अंतरिक्ष की गंध का पता केवल और केवल स्पेस यात्रियों के सूट और उनके औजारों से ही पता चलता है। जब उनकी जांच की जाती है तो तभी उनमें से आने वाली गंध का बताया जाता है। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अपनी एक रिसर्च में कहा है कि आकाशगंगा का केंद्र एक स्ट्रॉबेरी की तरह महकता है। मतलब कि जो खुशबू किसी बेरी में आती है वही हमारी आकाशगंगा के केंद्र में आती है। इसके पीछे तर्क यह है कि आकाशगंगा के केंद्र इथाइल फॉर्मेट बनती है जो खुद इन मीठी बेरीस इसमें भारी मात्रा में पाई जाती है।
5.ऐसा ग्रह है जहां पर हमेशा जलती है बर्फ।
दोस्तों बर्फ और आग दोनों एक दूसरे के ऑपोजिट हैं, पर हमारे अंतरिक्ष में एक ऐसा एक्सप्लेनेटरी यानी परदेसी ग्रह भी है जहां वास्तव में बर्फ जलती है। यह सोचने में ही बड़ा अजीब लगता है कि भला बर्फ जल कैसे सकती है। पर इस विचित्र ग्रह पर ऐसा ही होता है। Gliese 436 b नाम का यह परदेसी ग्रह हमसे 33 लाइट ईयर्स दूर है। इस ग्रह पर बर्फ हमेशा जलती ही रहती है। जिस वजह से इस ग्रह पर हमेशा एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। वैज्ञानिकों की मानें तो इस ग्रह पर बर्फ जलने का कारण है। यहां पर पानी का एक अजीब सी स्टेट में रहना जिसे कोई जानता ही नहीं। जिस वजह से ही Gliese 436 b की सतह पर बर्फ हमेशा जमी हुई रहती है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस ग्रह की सतह का तापमान 440 डिग्री सेल्सियस होने के बाद भी बर्फ ठोस रहती है और जलती हुई दिखाई पड़ती है।
6.क्या हमारी पृथ्वी भी ब्लैक होल बन सकती है।
ब्लैक होल हमेशा उन विशालकाय तारों से बनते हैं जो अपनी ऊर्जा खत्म करने के बाद अपने ही ग्रेविटी के कारण कलेप्स हो जाते हैं और सुपरनोवा एक्सप्लोजन करने के बाद यूनिवर्स की सबसे अजीब चीज ब्लैक होल में बदल जाते हैं। ब्लैक होल बनने के लिए किसी भी तरे को हमारे सूर्य से कम से कम 10 गुना ज्यादा वजनी होना चाहिए। नहीं तो वह कभी भी ब्लैक होल नहीं बन सकता है। हमारा सूर्य कभी भी ब्लैक होल नहीं बन सकता तो फिर हमारी पृथ्वी की गिनती ही क्या है। पर अगर आप फिर भी पृथ्वी को ब्लैक होल बनाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको इसे तब तक दबाना पड़ेगा जब तक कि किसी छोटे से कंचे जितनी ना हो जाए। पर ऐसा करना प्रैक्टिकली असंभव है।
7.तारों का आकार
चलिए अब बात करते हैं तारों के साइज के ऊपर। यह तो आप जानते हैं कि हमारा सूर्य एक तारा है जो कि अपने आप में बहुत विशाल है। इसके बिना हमारी धरती पर जो जीवन है, वह बहुत कम समय में खत्म हो सकता है। हमारा सूर्य इतना बड़ा है कि इसमें 10,00,000 पृथ्वी समा सकती हैं। ब्रह्मांड में सूर्य से भी कई गुना बड़े तारे हैं। कुछ तारे इतने बड़े हैं कि आप उनके आकार को जानकारी हैरान रह जाएंगे। हमारे सूर्य का पड़ोसी तारा खुद दुगना बड़ा है। अब तक के खोजे गए तारों में UY Scuti ब्रम्हांड का सबसे बड़ा तारा है। इसका रेडियस सूर्य से 1700 गुना है और इसके सामने हमारा सूर्य एक छोटे से पिक्सेल जैसा दिखाई देता है।8.हमारेे भ्रमांड की उम्र कितनी है।
हम अपनी उम्र तो आसानी से बता सकते हैं। यहां तक कि कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिक पृथ्वी पर पाई जाने वाली किसी भी पुरानी से पुरानी चीज की डेट भी आसानी से बता पाते हैं। पर जब बात यूनिवर्स की आती है तो एक बहस का मुद्दा बन जाता है। वैज्ञानिकों को आज भी भ्रमांड की उम्र को लेकर पूरी सहमति नहीं है कि आखिर इस की असल उम्र क्या है। कुछ वैज्ञानिक बिग बैंग के आधार पर इसे 14 अरब साल पुराना मानते हैं और पृथ्वी को 4.50 अरब साल पुराना। इस आधार पर ही चले तो इस यूनिवर्स की शुरुआत 14 अरब साल पहले ही हुई होगी। लगभग 13 अरब साल पहले आकाशगंगाऔं का निर्माण शुरू हुआ और 5 अरब वर्ष पहले हमारे सौरमंडल का जन्म हुआ। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी जो कि 4.50 आरब साल की है, उस पर हम इंसानों को आए हुए 70000 साल ही हुए हैं। अगर इसकी तुलना हम यूनिवर्स से करें तो यह कुछ भी नहीं है। अगर यूनिवर्स की उम्र को 1 साल मान ले तो हमारा सौरमंडल सिर्फ 1 महीने पुराना ही माना जाएगा, जिसमें हमारा अस्तित्व सिर्फ 1 सेकेंड से कम का ही है।
9.यूनिवर्स जिसे हम कभी जान नहीं सकते।
हमारा यूनिवर्स यानी ब्रह्मांड बहुत ही बड़ा है। ये बड़ा है कि किसी की कल्पना में भी नहीं समा सकता। ऐसे विशाल यूनिवर्स में कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें हम खोज नहीं सके हैं। यह चीजें हमें दिखाई नहीं देती है और ना ही हमारे वैज्ञानिक उपकरणों और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से पकड़ में आती हैं। वैज्ञानिकों ने इन्हीं रेडियो, इंफ्रारेड और एक्स-रे तरंगों के द्वारा ही यूनिवर्स की कई बड़े राज खोले हैं। हमारे यूनिवर्स में ऐसी भी कोई जगह है जहां पर हम इन तरंगों को कभी भेज नहीं सकते हैं। डार्क मैटर भी इन्हीं में से एक है, जो ना तो किसी तरह की तरंग को सकता है और ना ही छोड़ता है। इसे किसी भी तरह से देखा ही नहीं जा सकता। हम तरंगों को लाइट की स्पीड से ज्यादा तेज भी नहीं भेज सकते तो इस वजह से कई ऐसे ऑब्जेक्ट्स हैं जिन्हें हम अपने मानव जाति के काल में शायद कभी देखी ना पाए। कहने का मतलब है कि हमारा विज्ञान अभी इतना पीछे हैं कि यूनिवर्स के कई बड़े राज दबे के दबे ही रह जायेंगे। पर हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। आने वाले समय में विज्ञानिक शायद इतनी तरक्की कर ले कि भ्रमांड के और कई बड़े-बड़े राज वह आसानी से उजागर कर सके।
दोस्तों इस आर्टिकल में इतना ही। आपको यूनिवर्स का कौन सा फैक्ट या रहस्य ज्यादा अच्छा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं और इस आर्टिकल को अपने दोस्तों में जमकर शेयर करें। अब अंत में आपके लिए एक सवाल छोड़ कर हम चलते हैं। क्या आप पश्चिमी वैज्ञानिकों की बिग बैंग थ्योरी को सही मानते हैं। अगर मानते हैं तो कमेंट करके जरूर बताएं कि इसके पीछे आपकी क्या तर्क हैं और अगर नहीं मानते हैं तो भी बताएं। तो कमेंट करना ना भूलें। दोस्तों अगर आप इस वेबसाईट पर नए है तो इसे सब्सक्राइब जरूर करें ताकि हम आपको ऐसे ही बेहतरीन विज्ञान और रहस्यों से जुड़े आर्टिकल देते रहें। धन्यवाद आपका साथी।















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