Alpha Cenatauri Start System (Hindi), क्या यहां जीवन संभव है।
जिंदगी, यह महज एक शब्द नहीं है बल्कि इसी ने हमें मजबूर कर दिया है पूरा ब्रह्मांड खंगालने पर। कुछ भी करो, कोई भी टेलीस्कोप यूज करो, कोई भी टेक्नोलॉजी यूज करो, स्पेस मिशंस भेजो चाहे कितना भी पैसा खर्च हो जाए, पर पृथ्वी के अलावा ब्रह्मांड में कहीं भी इस जिंदगी को खोज निकालो।फिर चाहे वह आकर में कितनी भी छोटी क्यों ना हो। आजकल सभी खगोल वैज्ञानिक यही तो कर रहे हैं। यह बात तो हम सदियों से जानते थे कि इस जिंदगी का संबंध सिर्फ हमारी पृथ्वी से ही नहीं है बल्कि इस ब्रह्मांड में कहीं भी इसका बसेरा हो सकता है। लेकिन तब शायद हमारे पास इतने आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण नहीं थे। आज का दिन, लेकिन आज हम लैस हैं विज्ञान के सभी आधुनिक उपकरणों से और सक्षम है पृथ्वी के अलावा कहीं भी जीवन के उन सूक्ष्म अंशों को ढूंढने में जो वाकई में वहां हो सकते हैं।पर इस अनंत ब्रह्मांड में आज भी पृथ्वी से जीवन की तलाश करना संभावनाओं का खेल है। मतलब यह कि हमें जीवन की पुष्टि करने के लिए हमें यह हमारे उपकरणों को इस अनंत ब्रह्मांड में सैर करते हुए उस जगह तक जाना होगा, जहां हम जीवन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। और इसी जीवन की संभावनाओं की तलाश में हमारी निगाह टिकी है हमारे पड़ोसी सौरमंडल, अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम पर।आज के इस एपिसोड में हम अल्फासेंस स्टार सिस्टम के बारे में जानेंगे।
खत्म होने पर प्रॉक्सिमा सेंचुरी वाइट द्वार में तब्दील हो जाएगा। और जैसे-जैसे यह ठंडा होता जाएगा, यह एक ब्लैक ड्रॉफ स्टार में बदलता जाएगा और यह क्षण प्रॉक्सिमा सेंचुरी के जैसे तारों के लिए आखिरी क्षण होंगे।अभी हमारे यूनिवर्स की उम्र इतनी नहीं है कि कोई रेड ड्रॉफ स्टार ब्लू ड्रॉफ में कन्वर्ट हुआ हो। लेकिन प्रैक्टिकल मॉडल्स के मुताबिक भविष्य में ऐसा हो सकता है। अब प्रॉक्सिमा सेंचुरी के पास खरबों सालों की जिंदगी पड़ी है। अगर यह हमारे काम आ सके तो यह एक बड़ी बात होगी और ऐसा ही कुछ 21वीं शताब्दी में होने वाला था। 21 वीं शताब्दी, यूरोपियन साउदर्न ऑब्जर्वेटरी, जनवरी सन 2016, दुनिया के अलग-अलग देशों से 31 वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई गई। यह सारा काम पेल रेड डॉट प्रोजेक्ट के अंतर्गत हो रहा था, जिसे यूरोपियन साउदर्न ऑब्जर्वेटरी ने जनवरी 2016 में ही लांच किया था।24 अगस्त सन 2016, आखिर मेहनत रंग लाई और इस टीम ने प्रॉक्सिमा सेंचुरी का ऑर्बिट कर रहे एक प्लेनेट की एक्जिस्टेंस को कंफर्म कर लिया था। हालांकि यह पहला केस नहीं था। सन 2013 में Mikko Tuomi ने पहली बार प्रॉक्सिमा सेंचुरी के पास एक exo प्लेनेट होने के संकेत दिए थे। प्रॉक्सिमा सेंचुरी के पास खोजे गए इस प्लेनेट को प्रॉक्सिमा सेंचुरी B के नाम से जाना जाता है।यह प्लेनेट रेडियल वेलोसिटी मेथड से खोजा गया। प्रॉक्सिमा सेंचुरी B अपने स्टार यानी प्रॉक्सिमा सेंचुरी से सिर्फ 0.05 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट्स की दूरी पर है। यह दूरी है 7.5 मिलियन किलोमीटर। जबकि हमारे सौरमंडल का पहला ग्रह मरकरी सूर्य से लगभग 57.91 मिलीयन किलोमीटर की दूरी पर है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी बी का ऑर्बिटल पीरियड 11.2 दिन होने का अनुमान लगाया गया है। यह प्लेनेट हमारी पृथ्वी से 1.3 गुना ज्यादा भारी हो सकता है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी स्टार का हैबिटेबल जोन 0.023 से लेकर 0.054 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट की दूरी तक फैला हुआ है। और प्रॉक्सिमा सेंचुरी B इस हैबिटेबल जोन में आता है और यही कारण है कि हमारी निगाह प्रॉक्सिमा सेंचुरी B पर टिकी हुई है।संभव है कि यहां पानी तरल रूप में मौजूद हो, लेकिन किसी भी प्लेनेट के हैबिटेबल जोन में होने का यह मतलब कभी नहीं होता कि वहां 100% जीवन होगा ही। हैबिटेबल जॉन सिर्फ इस बात की पुष्टि करता है कि उस जोन में तापमान ठीक उतना ही होगा कि वहां पानी तरल रूप में रह सके। ऐसा भी हो सकता है कि प्लेनेट हैबिटेबल जोन में हो, लेकिन वहां पानी ही ना हो। अगर पानी हो तो वातावरण ही ना हो। जीवन कई अन्य परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। हम प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर जा सकते हैं, लेकिन जैसा कि शुरू में कहा था कि पृथ्वी से बाहर जीवन ढूंढना संभावनाओं का खेल है। हम सभी आशा करते हैं कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर जीवन हो और हमें भविष्य के लिए एक नया घर मिले। पर इसमें अनेकों प्रॉब्लम है जो हमें यह सोचने पर मजबूर कर देंगे कि क्या वाकई में प्रॉक्सिमा सेंचुरी B ऐसे ही बिना जीवन के वीरान पड़ा रहेगा। सबसे बड़ी प्रॉब्लम है इसका अल्फा सेंचुरी से डिस्टेंस जो कि सिर्फ 0.05 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट्स है और यह हमारी सूर्य और मरकरी के बीच की दूरी का सिर्फ 12.95% है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी एक वैरियेबल्स स्टार है। उससे निकलने वाली रेडिएशन लगातार वेरिएबल अमाउंट में रिलीज होते हैं। कभी-कभी यह कम चमकता है तो कभी-कभी ज्यादा चमकदार होता है। इसकी मैग्नेटिक फील्ड लगातार खतरनाक सोलर फ्लेयर्स को जन्म देती है और इससे निकलने वाले सभी रेडिएशन जैसे कि इंफ्रारेड, अल्ट्रावॉयलेट और एक्स-रे इतनी ज्यादा ताकतवर होते हैं कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी B पर जीवन किसी नर्क से कम नहीं होगा। प्रॉक्सिमा सेंचुरी B की दूसरी सबसे बड़ी प्रॉब्लम है कि यह प्लेनेट कम दूरी होने के कारण प्रॉक्सिमा सेंचुरी से टाईडियली लॉक हो सकता है। इसकी एक साइड में हमेशा के लिए दिन और दूसरी साइड हमेशा अंधेरा हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो दोनों तरफ तापमान में बहुत ज्यादा अंतर होगा और हमारे लिए सिर्फ बीच की जगह बचेगी रहने के लिए। जहां तापमान ना तो ज्यादा गर्म होगा और ना ही ज्यादा ठंडा। ऐसे में इस प्लेनेट की डार्क साइड की तरफ रहने के लिए हम बड़े-बड़े शिशो को स्पेस में भेज सकते हैं जो प्रॉक्सिमा सेंचुरी से आ रही लाइट को रिफ्लेक्ट करके डार्कसाइड को रोशन कर सकते हैं। एक और बड़ी चुनौती यह भी है कि अगर इस प्लेनेट पर वातावरण ही ना हुआ तो और या फिर पानी ही ना हुआ तो। यहां पर हमारी सभी उम्मीदें टूटती नजर आएंगी। लेकिन अगर हम यह सोच कर चलें कि सब कुछ हमारी इच्छा के मुताबिक हो रहा है तो तस्वीर इससे बिल्कुल अलग होगी। हमें वहां पानी भी मिल गया और वातावरण भी, अगर रहने के लिए यहां सभी कंडीशन सही हैं और हमारी कॉलोनी अब प्रॉक्सिमा सेंचुरी B पर है तो एक अजूबा वहां रहने वाले सभी देखेंगे। रात के समय प्रॉक्सिमा सेंचुरी B के आसमान में दो सबसे ब्राइट स्टार दिखाई देंगे। और वह होंगे अल्फा सेंचुरी के बायनरी स्टार, अल्फा सेंचुरी AB। प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर जीवन होना हमारे उज्जवल भविष्य के लिए सबसे बड़ी आशा की किरण है। अल्फा सेंचुरी की पकड़ प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर बहुत कम है और फ्यूचर में यह हो सकता है कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी इस स्टार सिस्टम को छोड़कर स्पेस में कहीं स्वतंत्र रूप से शेर करने लगे। और हो सकता है कि इससे अल्फा सेंचुरी का प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर बसे हुए जीवन पर शायद कोई बुरा प्रभाव ही न पड़े। प्रॉक्सिमा सेंचुरी की ही तरह अल्फा सेंचुरी बायनरी सिस्टम में भी ऐसे ही ग्रहों की तलाश की गई जहां जीवन संभव हो। सन 2012 में ऐसे ही एक प्लेनेट अल्फा सेंचुरी B के ऑर्बिट में होने का अंदाजा लगाया गया। लेकिन सन 2015 में हुए एनालिसिस से यह पता चला कि ऐसा कोई प्लेनेट एक्जिस्ट ही नहीं करता। अनुमान में यह गलती गलत डाटा के कारण हुई थी। सन 2013 में अल्फा सेंचुरी B के ऑर्बिट में एक और प्लेनेट खोजा गया, जिसे अल्फा सेंचुरी BC नाम दिया गया। इसका ऑर्बिटल पीरियड 12 दिन होने का अनुमान लगाया गया। ट्रिपल स्टार सिस्टम होने के कारण यहां प्लेनेट के होने के ज्यादा चांसेस हो सकते हैं। एक बड़ी संभावना है कि गृह बायनरी सिस्टम के तारों को ऑर्बिट कर रहे हो और एक और संभावना यह हो सकती है कि गृह इस बायनरी सिस्टम को ही ऑर्बिट कर रहे हो, किसी बड़े ऑर्बिट में। लेकिन किसी भी तरह की ऑब्जरवेशन से हमें कोई भी ब्राउन ड्रॉफ या गैस जॉइंट नहीं मिले हैं। लेकिन हमारी थियोरेटिकल स्टडी यह कहती है कि अल्फा सेंचुरी A और B के ऑर्बिट में पृथ्वी जैसे ग्रह मौजूद हो सकते हैं और वह भी हैबिटेबल जोन में। फिलहाल इनके हैबिटेबल जोन में किसी भी तरह से पृथ्वी जैसे ग्रह मिलने की प्रोबेबिलिटी 85% है। लेकिन संभावनाएं कभी भी बदल सकती हैं। अल्फा सेंचुरी के दोनों तारे बहुत ज्यादा करीब है और इसलिए भी एक-एक करके इनकी स्टडी करना भी मुश्किल काम है और शायद इसलिए भी हमें ऐसे ग्रह ढूंढने में कठिनाई हो रही है। लेकिन अगर हमें अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम के किसी भी प्लेनेट पर जीवन होने की आशंका होती भी है तो सबसे बड़ी दिक्कत हमें 4.2 या फिर 4.3 लाइट ईयर्स की दूरी का सफर करके वहां पहुंचने में होगी। यह वह दूरी है जिसे हमारे ब्रह्मांड की सबसे तेज ऑब्जेक्ट यानी लाइट भी 4.2 या 4.3 सालों में पूरा करेगी। लेकिन क्या हमारे स्पेसक्राफ्ट इस दूरी को एक जनरेशन में ही पूरा कर पाएंगे? क्या हम कोई ऐसा स्पेसक्राफ्ट बना पाएंगे जो इंसानों को तेजी से प्रॉक्सिमा सेंचुरी B तक ले जाए? आपको क्या लगता है, हमें कमेंट करके जरूर बताएं। फिलहाल प्रॉक्सिमा सेंचुरी हमारे सौरमंडल के सबसे नजदीक है और यह पिछले लगभग 32000 सालों से हमारा सबसे नजदीकी तारा है। लेकिन यह सच्चाई हमेशा के लिए ऐसे ही नहीं रहेगी। लगभग 25000 साल के बाद यह तथ्य बदल जाएगा और उस समय अल्फा सेंचुरी A और B सबसे नजदीकी तारीफ बनते रहेंगे। लगभग 80 सालों के रेगुलर इंटरवल के बाद और फिर से लाखों सालों बाद प्रॉक्सिमा सेंचुरी ही बन जाएगा, हमारा सबसे नजदीकी तारा। लेकिन यहीं हमारी संभावनाओं का अंत नहीं होता क्योंकि हमारा जीवन अमूल्य है और शायद हम पैदा ही इसलिए हुए हैं। ब्रह्मांड को खोजने के लिए और ब्रह्मांड को जानने के लिए। क्या पता ऐसे ही कई रेड ड्रॉफ प्रॉक्सिमा सेंचुरी से नजदीक हमारा इंतजार कर रहे हो। सिर्फ देर है तो टेलिस्कोप को उधर घुमा कर उन्हें खोज निकालने की।
पांडुचेरी, दिसंबर 1689, एस्ट्रोनॉमर jene Richard किसी Comet का अध्ययन कर रहे थे।
लेकिन एक्सीडेंटली उन्होंने अल्फा सेंचुरी को देखा। वाकई में अल्फा सेंचुरी कोई एक तारा नहीं था। यह तो दो तारों का समूह था।और इसी तरह jene Richard वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पता लगाया कि अल्फा सेंचुरी बायनरी स्टार सिस्टम है। अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम के दोनों तारे एक दूसरे के बेहद करीब है और इसीलिए पृथ्वी से देखने पर दोनों एक ही बिंदु पर दिखाई देते हैं। यह स्टार सिस्टम साउदर्न कांस्टेलेशन सैंटोरस में दिखाई देने वाला सबसे चमकीला तारा है और हमारी रात के आसमान में दिखाई देने वाला तीसरा सबसे ज्यादा चमकीला तारा भी है। तो अब जब भी आप रात को तारों से चमकते आसमान को देखोगे, तो अपने पड़ोसी एल्फा सेंचुरी के तारों को हेलो जरूर बोल दीजिए। 19वीं शताब्दी तक हुए अध्ययन में हमने अल्फा सेंचुरी के इन दो तारों के बारे में बहुत कुछ पता लगाया। यह दोनों तारे एक कॉमन बैरी सेंटर पर एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे हैं। इस स्टार सिस्टम का सबसे बड़ा तारा है, अल्फा सेंचुरी A और दूसरा तारा है, अल्फा सेंचुरी B, जो कि आकार में अल्फा सेंचुरी A से छोटा है। अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम को अल्फा सेंचुरी AB के नाम से भी जाना जाता है। अगर इसका सिस्टम के तारों की हमारी अपने सूर्य से तुलना की जाए तो अनेकों मजेदार तथ्य सामने आ सकते हैं। अल्फा सेंचुरी AB को रीगल के नाम से भी जाना जाता है। अल्फा सेंचुरी A, अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम का प्रिंसिपल मेंबर या फिर कहें तो मुख्य मेंबर भी माना जाता है। अल्फा सेंचुरी A जो कि इस बायनरी सिस्टम का सबसे बड़ा तारा है। वह हमारे सूर्य से भी बड़ा है। अल्फा सेंचुरी A का रेडियस साडे आठ लाख किलोमीटर से भी ज्यादा है, जो कि हमारे सूर्य से लगभग 22% ज्यादा बढ़ा है। भार में यह तारा हमारे सूर्य से 10% ज्यादा भारी है और वही अगर चमकने की बात की जाए तो अल्फा सेंचुरी A हमारे सूर्य से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा चमकदार है। इस सारे का रोटेशनल पीरियड 22 दिन है, जबकि हमारे सूर्य का रोटेशनल पीरियड 25 दिन है। इस बायनरी सिस्टम का दूसरा और छोटा तारा है अल्फा सेंचुरी B, जो कि इस सिस्टम का सेकेंडरी मेंबर, companion स्टार या फिर कहे तो साथी तारा भी कहा जाता है। यह तारा हमारे सूर्य से छोटा है और ठंडा भी है। अल्फा सेंचुरी A पीले रंग का है। लेकिन अल्फा सेंचुरी B ठंडा होने के कारण ऑरेंज कलर का दिखाई देता है। अल्फा सेंचुरी B का रेडियस लगभग 600000 किलोमीटर है जो कि हमारे सूर्य से लगभग 14% कम है। भार में यह तारा हमारी सूर्य से लगभग 10% कम भारी है और अनुमान है कि इसका रोटेशनल पीरियड 37 दिन से लेकर 41 दिन के बीच हो सकता है।अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम हमारे सौरमंडल से तकरीबन 4.37 लाइट ईयर्स की दूरी पर है। अगर भविष्य में कभी हम अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम पर जाएंगे या फिर इसके नजदीक से होकर भी गुजरेंगे तो जैसे जैसे हम इसके करीब जाएंगे तो हमें यह एक बिंदु से दो होते हुए नजर आएंगे। यह दोनों तारे लगभग 79.91 साल में एक ऑर्बिट पूरा करते हैं और इस समय के दौरान यह दोनों तारे एक दूसरे के इतने ज्यादा नजदीक आ जाते हैं कि इनके बीच की दूरी केवल 11.2 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट ही रह जाती है। 1.68 बिलियन किलोमीटर की यह दूरी हमारे सूर्य और शनि ग्रह की दूरी के लगभग बराबर है और इस ऑर्बिट के दौरान यह दोनों तारे एक दूसरे से सबसे दूर 35.6 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट की दूरी तक चले जाते हैं। 5.33 बिलीयन किलोमीटर की यह दूरी हमारे सूर्य और ड्रॉफ प्लैनेट प्लूटो की दूरी के लगभग बराबर है। अल्फा सेंचुरी के इस बायनरी स्टार सिस्टम का भार हमारी सूर्य से लगभग दोगुना आंका गया है। इस बायनरी स्टार सिस्टम के बारे में वैज्ञानिकों का यह भी अनुमान है कि इसके दोनों तारे हमारे सूर्य के जन्म से भी करोड़ों साल पुराने है। मतलब यहां हमारे सौरमंडल के किसी भी रहस्यमई हिस्से से भी कई करोड़ साल पुराने रहस्य दबे हो सकते हैं और रहस्यमई तो यह बाइनरी सिस्टम शुरू से ही है। अल्फा सेंचुरी टॉलमी की सेकंड सेंचुरी स्टार कैटलॉग की सूची में शामिल था और टॉलमी के समय यह तारा उनके अपने शहर अलेक्जेंड्रिया इजिप्ट से दिखाई देता था। लेकिन क्या आपको पता है कि तारे हमारे आसमान में और अपने बैकग्राउंड के तारों की पोजीशन में कभी फिक्स नहीं होते। तारे एक दूसरे से रिलेटिव मोशन में रहते हैं। हमारी सूर्य से अगर कोई तारा रिलेटिव मोशन में है तो उसकी एप्रिंट पोजीशन आसमान में लगातार बदलती रहेगी और इस मशीन को एस्ट्रोनॉमी में प्रॉपर मोशन कहा जाता है और इसी प्रॉपर मोशन के कारण अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम को आज हम टॉलमी के शहर अलेक्जेंड्रिया से नहीं देख सकते। लेकिन आगे बीसवीं शताब्दी में इस रहस्यमई अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम को लेकर एक और बड़ा खुलासा होने वाला था। बीसवीं शताब्दी, जोहान्सबर्ग साउथ अफ्रीका सन 1915, इसी साल सदी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने एक तरफ अपनी विज्ञप्ति थेओरी जनरल रिलेटिविटी की ग्रेविटेशनल फील्ड इक्वेशन पब्लिश की थी। वहीं दूसरी तरफ सन 1915 में स्कॉटिश एस्ट्रोनॉमर रॉबर्ट टी ए एन एस ने अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम की प्रॉपर मोशन को स्टडी करते हुए अपनी फोटोग्राफिक प्लेट में ब्लिंकिंग देखी। उन्होंने अलग-अलग समय पर भी फोटोग्राफिक प्लेट चेक की, लेकिन वही ब्लिंकिंग हर समय आ रही थी। यह कोई अनजान ऑब्जेक्ट थी लेकिन काफी बड़ी थी। स्टडी करने पर इस ऑब्जेक्ट के पैरेलेक्स का साइज और डायरेक्शन अल्फा सेंचुरी AB से काफी मिलता-जुलता था। जिसका मतलब था कि यह ऑब्जेक्ट भी इस सिस्टम का हिस्सा है। लेकिन यह अंजन ऑब्जेक्ट इस बायनरी सिस्टम से ज्यादा प्रॉपर मोशन शो कर रही थी। जिसका सीधा सा मतलब था कि यह ऑब्जेक्ट इस बायनरी सिस्टम के मुकाबले हमारे सौरमंडल के ज्यादा करीब थी और यह अनजान ऑब्जेक्ट थी एक रेड ड्रॉफ स्टार जिसे अल्फा सेंचुरी C नाम दिया गया।लेकिन इसे आमतौर पर प्रॉक्सिमा सेंचुरी भी कहा जाता है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी हमारे सौरमंडल से तकरीबन 4.24 लाइट ईयर्स की दूरी पर है और इस तरह हमें हमारा सबसे नजदीकी तारा प्रॉक्सिमा सेंचुरी मिला। अब अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम सिर्फ बायनरी स्टार सिस्टम नहीं रहा। प्रॉक्सिमा सेंचुरी की खोज ने इसे ट्रिपल स्टार सिस्टम बना दिया था। प्रॉक्सिमा सेंचुरी इस स्टार सिस्टम का सबसे छोटा और ठंडा तारा है। अगर इसकी तुलना हमारी सूर्य से की जाए तो प्रॉक्सिमा सेंचुरी का डायमीटर हमारी सूर्य के डायमीटर का सिर्फ एक बटा सातवां हिस्सा ही है। लेकिन वहीं अगर mean डेंसिटी की बात की जाए तो प्रॉक्सिमा सेंचुरी की mean density 47.1 ग्राम पर सेंटीमीटर क्यूब है और हमारे सूर्य की सिर्फ 1.41 ग्राम पर सेंटीमीटर क्यूब है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी की मेन डेंसिटी हमारे सूर्य की मेन डेंसिटी से लगभग 33.38 गुना ज्यादा है, लेकिन हमारा सूर्य प्रॉक्सिमा सेंचुरी से लगभग 600 गुना ज्यादा चमकता है। आकर में प्रॉक्सिमा सेंचुरी हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति ग्रह से सिर्फ डेढ़ गुना ज्यादा बढ़ा है, लेकिन इतने ही आकार में इसका भार 129 बृहस्पति ग्रहों के बराबर है। लेकिन हमारी सूर्य के सामने इसका भार भी इसके कद की तरह बोना रह जाता है। इसका भार हमारे सूर्य के कुल भार का सिर्फ 12.2% ही है। अल्फा सेंचुरी सिस्टम में यह तारा अल्फा सेंचुरी के बैरी सेंटर से लगभग 13000 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट की दूरी पर है। और यह दूरी 1.9 ट्रिलियन किलोमीटर के बराबर होती है जो कि हमारे सूर्य और अल्फा सेंचुरी के बीच की दूरी का 5% है। इस सारे की इतनी ज्यादा दूरी होने के कारण इसकी मौजूदगी पर हमेशा सवाल उठते रहे। इसका जन्म क्या वाकई में इसी स्टार सिस्टम में हुआ था या फिर यह कोई पासिंग स्टार था जो स्वतंत्र रूप से इस अंतरिक्ष में घूम रहा था, लेकिन बायनरी सिस्टम की ताकतवर ग्रेविटी ने इसे दबोच लिया और मजबूर कर दिया कि यह इस बायनरी सिस्टम की परिक्रमा करे। प्रॉक्सिमा सेंचुरी, अल्फा सेंचुरी AB के बैरी सेंटर का एक ऑर्बिट लगभग 5.5 लाख सालों में पूरा करता है जो कि एक बहुत ही लंबा समय है।लेकिन यह लंबा समय इस छोटे तारे की उम्र के आगे आपको महज़ एक नैनो सेकंड की तरह लगेगा। इसकी उम्र भी अल्फा सेंचुरी के बाकी तारों की तरह हमारी सूर्य से अधिक तो है ही, लेकिन यह आने वाले लगभग 4 ट्रिलियन सालों तक मेन सीक्वल स्टार बना रहेगा। मतलब यह कि यह आने वाले 4 ट्रिलियन सालों तक एनर्जी प्रोड्यूस करता रहेगा और यह उम्र हमारे आज के ब्रह्मांड की उम्र से 300 गुना ज्यादा लंबी है और इसके बाद यह रेड ड्रॉफ जब अपने अंतिम समय में ज्यादा हाइड्रोजन कंज्यूम करेगा और एक ब्लू ड्रॉफ स्टार में बदल जाएगा और ब्लू ड्रॉफ की सारी हाइड्रोजनखत्म होने पर प्रॉक्सिमा सेंचुरी वाइट द्वार में तब्दील हो जाएगा। और जैसे-जैसे यह ठंडा होता जाएगा, यह एक ब्लैक ड्रॉफ स्टार में बदलता जाएगा और यह क्षण प्रॉक्सिमा सेंचुरी के जैसे तारों के लिए आखिरी क्षण होंगे।अभी हमारे यूनिवर्स की उम्र इतनी नहीं है कि कोई रेड ड्रॉफ स्टार ब्लू ड्रॉफ में कन्वर्ट हुआ हो। लेकिन प्रैक्टिकल मॉडल्स के मुताबिक भविष्य में ऐसा हो सकता है। अब प्रॉक्सिमा सेंचुरी के पास खरबों सालों की जिंदगी पड़ी है। अगर यह हमारे काम आ सके तो यह एक बड़ी बात होगी और ऐसा ही कुछ 21वीं शताब्दी में होने वाला था। 21 वीं शताब्दी, यूरोपियन साउदर्न ऑब्जर्वेटरी, जनवरी सन 2016, दुनिया के अलग-अलग देशों से 31 वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई गई। यह सारा काम पेल रेड डॉट प्रोजेक्ट के अंतर्गत हो रहा था, जिसे यूरोपियन साउदर्न ऑब्जर्वेटरी ने जनवरी 2016 में ही लांच किया था।24 अगस्त सन 2016, आखिर मेहनत रंग लाई और इस टीम ने प्रॉक्सिमा सेंचुरी का ऑर्बिट कर रहे एक प्लेनेट की एक्जिस्टेंस को कंफर्म कर लिया था। हालांकि यह पहला केस नहीं था। सन 2013 में Mikko Tuomi ने पहली बार प्रॉक्सिमा सेंचुरी के पास एक exo प्लेनेट होने के संकेत दिए थे। प्रॉक्सिमा सेंचुरी के पास खोजे गए इस प्लेनेट को प्रॉक्सिमा सेंचुरी B के नाम से जाना जाता है।यह प्लेनेट रेडियल वेलोसिटी मेथड से खोजा गया। प्रॉक्सिमा सेंचुरी B अपने स्टार यानी प्रॉक्सिमा सेंचुरी से सिर्फ 0.05 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट्स की दूरी पर है। यह दूरी है 7.5 मिलियन किलोमीटर। जबकि हमारे सौरमंडल का पहला ग्रह मरकरी सूर्य से लगभग 57.91 मिलीयन किलोमीटर की दूरी पर है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी बी का ऑर्बिटल पीरियड 11.2 दिन होने का अनुमान लगाया गया है। यह प्लेनेट हमारी पृथ्वी से 1.3 गुना ज्यादा भारी हो सकता है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी स्टार का हैबिटेबल जोन 0.023 से लेकर 0.054 एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट की दूरी तक फैला हुआ है। और प्रॉक्सिमा सेंचुरी B इस हैबिटेबल जोन में आता है और यही कारण है कि हमारी निगाह प्रॉक्सिमा सेंचुरी B पर टिकी हुई है।संभव है कि यहां पानी तरल रूप में मौजूद हो, लेकिन किसी भी प्लेनेट के हैबिटेबल जोन में होने का यह मतलब कभी नहीं होता कि वहां 100% जीवन होगा ही। हैबिटेबल जॉन सिर्फ इस बात की पुष्टि करता है कि उस जोन में तापमान ठीक उतना ही होगा कि वहां पानी तरल रूप में रह सके। ऐसा भी हो सकता है कि प्लेनेट हैबिटेबल जोन में हो, लेकिन वहां पानी ही ना हो। अगर पानी हो तो वातावरण ही ना हो। जीवन कई अन्य परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। हम प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर जा सकते हैं, लेकिन जैसा कि शुरू में कहा था कि पृथ्वी से बाहर जीवन ढूंढना संभावनाओं का खेल है। हम सभी आशा करते हैं कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर जीवन हो और हमें भविष्य के लिए एक नया घर मिले। पर इसमें अनेकों प्रॉब्लम है जो हमें यह सोचने पर मजबूर कर देंगे कि क्या वाकई में प्रॉक्सिमा सेंचुरी B ऐसे ही बिना जीवन के वीरान पड़ा रहेगा। सबसे बड़ी प्रॉब्लम है इसका अल्फा सेंचुरी से डिस्टेंस जो कि सिर्फ 0.05 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट्स है और यह हमारी सूर्य और मरकरी के बीच की दूरी का सिर्फ 12.95% है। प्रॉक्सिमा सेंचुरी एक वैरियेबल्स स्टार है। उससे निकलने वाली रेडिएशन लगातार वेरिएबल अमाउंट में रिलीज होते हैं। कभी-कभी यह कम चमकता है तो कभी-कभी ज्यादा चमकदार होता है। इसकी मैग्नेटिक फील्ड लगातार खतरनाक सोलर फ्लेयर्स को जन्म देती है और इससे निकलने वाले सभी रेडिएशन जैसे कि इंफ्रारेड, अल्ट्रावॉयलेट और एक्स-रे इतनी ज्यादा ताकतवर होते हैं कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी B पर जीवन किसी नर्क से कम नहीं होगा। प्रॉक्सिमा सेंचुरी B की दूसरी सबसे बड़ी प्रॉब्लम है कि यह प्लेनेट कम दूरी होने के कारण प्रॉक्सिमा सेंचुरी से टाईडियली लॉक हो सकता है। इसकी एक साइड में हमेशा के लिए दिन और दूसरी साइड हमेशा अंधेरा हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो दोनों तरफ तापमान में बहुत ज्यादा अंतर होगा और हमारे लिए सिर्फ बीच की जगह बचेगी रहने के लिए। जहां तापमान ना तो ज्यादा गर्म होगा और ना ही ज्यादा ठंडा। ऐसे में इस प्लेनेट की डार्क साइड की तरफ रहने के लिए हम बड़े-बड़े शिशो को स्पेस में भेज सकते हैं जो प्रॉक्सिमा सेंचुरी से आ रही लाइट को रिफ्लेक्ट करके डार्कसाइड को रोशन कर सकते हैं। एक और बड़ी चुनौती यह भी है कि अगर इस प्लेनेट पर वातावरण ही ना हुआ तो और या फिर पानी ही ना हुआ तो। यहां पर हमारी सभी उम्मीदें टूटती नजर आएंगी। लेकिन अगर हम यह सोच कर चलें कि सब कुछ हमारी इच्छा के मुताबिक हो रहा है तो तस्वीर इससे बिल्कुल अलग होगी। हमें वहां पानी भी मिल गया और वातावरण भी, अगर रहने के लिए यहां सभी कंडीशन सही हैं और हमारी कॉलोनी अब प्रॉक्सिमा सेंचुरी B पर है तो एक अजूबा वहां रहने वाले सभी देखेंगे। रात के समय प्रॉक्सिमा सेंचुरी B के आसमान में दो सबसे ब्राइट स्टार दिखाई देंगे। और वह होंगे अल्फा सेंचुरी के बायनरी स्टार, अल्फा सेंचुरी AB। प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर जीवन होना हमारे उज्जवल भविष्य के लिए सबसे बड़ी आशा की किरण है। अल्फा सेंचुरी की पकड़ प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर बहुत कम है और फ्यूचर में यह हो सकता है कि प्रॉक्सिमा सेंचुरी इस स्टार सिस्टम को छोड़कर स्पेस में कहीं स्वतंत्र रूप से शेर करने लगे। और हो सकता है कि इससे अल्फा सेंचुरी का प्रॉक्सिमा सेंचुरी पर बसे हुए जीवन पर शायद कोई बुरा प्रभाव ही न पड़े। प्रॉक्सिमा सेंचुरी की ही तरह अल्फा सेंचुरी बायनरी सिस्टम में भी ऐसे ही ग्रहों की तलाश की गई जहां जीवन संभव हो। सन 2012 में ऐसे ही एक प्लेनेट अल्फा सेंचुरी B के ऑर्बिट में होने का अंदाजा लगाया गया। लेकिन सन 2015 में हुए एनालिसिस से यह पता चला कि ऐसा कोई प्लेनेट एक्जिस्ट ही नहीं करता। अनुमान में यह गलती गलत डाटा के कारण हुई थी। सन 2013 में अल्फा सेंचुरी B के ऑर्बिट में एक और प्लेनेट खोजा गया, जिसे अल्फा सेंचुरी BC नाम दिया गया। इसका ऑर्बिटल पीरियड 12 दिन होने का अनुमान लगाया गया। ट्रिपल स्टार सिस्टम होने के कारण यहां प्लेनेट के होने के ज्यादा चांसेस हो सकते हैं। एक बड़ी संभावना है कि गृह बायनरी सिस्टम के तारों को ऑर्बिट कर रहे हो और एक और संभावना यह हो सकती है कि गृह इस बायनरी सिस्टम को ही ऑर्बिट कर रहे हो, किसी बड़े ऑर्बिट में। लेकिन किसी भी तरह की ऑब्जरवेशन से हमें कोई भी ब्राउन ड्रॉफ या गैस जॉइंट नहीं मिले हैं। लेकिन हमारी थियोरेटिकल स्टडी यह कहती है कि अल्फा सेंचुरी A और B के ऑर्बिट में पृथ्वी जैसे ग्रह मौजूद हो सकते हैं और वह भी हैबिटेबल जोन में। फिलहाल इनके हैबिटेबल जोन में किसी भी तरह से पृथ्वी जैसे ग्रह मिलने की प्रोबेबिलिटी 85% है। लेकिन संभावनाएं कभी भी बदल सकती हैं। अल्फा सेंचुरी के दोनों तारे बहुत ज्यादा करीब है और इसलिए भी एक-एक करके इनकी स्टडी करना भी मुश्किल काम है और शायद इसलिए भी हमें ऐसे ग्रह ढूंढने में कठिनाई हो रही है। लेकिन अगर हमें अल्फा सेंचुरी स्टार सिस्टम के किसी भी प्लेनेट पर जीवन होने की आशंका होती भी है तो सबसे बड़ी दिक्कत हमें 4.2 या फिर 4.3 लाइट ईयर्स की दूरी का सफर करके वहां पहुंचने में होगी। यह वह दूरी है जिसे हमारे ब्रह्मांड की सबसे तेज ऑब्जेक्ट यानी लाइट भी 4.2 या 4.3 सालों में पूरा करेगी। लेकिन क्या हमारे स्पेसक्राफ्ट इस दूरी को एक जनरेशन में ही पूरा कर पाएंगे? क्या हम कोई ऐसा स्पेसक्राफ्ट बना पाएंगे जो इंसानों को तेजी से प्रॉक्सिमा सेंचुरी B तक ले जाए? आपको क्या लगता है, हमें कमेंट करके जरूर बताएं। फिलहाल प्रॉक्सिमा सेंचुरी हमारे सौरमंडल के सबसे नजदीक है और यह पिछले लगभग 32000 सालों से हमारा सबसे नजदीकी तारा है। लेकिन यह सच्चाई हमेशा के लिए ऐसे ही नहीं रहेगी। लगभग 25000 साल के बाद यह तथ्य बदल जाएगा और उस समय अल्फा सेंचुरी A और B सबसे नजदीकी तारीफ बनते रहेंगे। लगभग 80 सालों के रेगुलर इंटरवल के बाद और फिर से लाखों सालों बाद प्रॉक्सिमा सेंचुरी ही बन जाएगा, हमारा सबसे नजदीकी तारा। लेकिन यहीं हमारी संभावनाओं का अंत नहीं होता क्योंकि हमारा जीवन अमूल्य है और शायद हम पैदा ही इसलिए हुए हैं। ब्रह्मांड को खोजने के लिए और ब्रह्मांड को जानने के लिए। क्या पता ऐसे ही कई रेड ड्रॉफ प्रॉक्सिमा सेंचुरी से नजदीक हमारा इंतजार कर रहे हो। सिर्फ देर है तो टेलिस्कोप को उधर घुमा कर उन्हें खोज निकालने की।
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