ब्लैक होल के नजदीक समय धीमा क्यों हो जाता है।
सबसे पहले इस बात की चर्चा कर लेते हैं कि हम ऐसा क्यों मानते हैं कि टाइम एब्सोल्यूट नहीं बल्कि रिलेटिव है। न्यूटन के अनुसार टाइम एब्सोल्यूट होता है। यानी कि इस ब्रम्हांड में हर जगह और हर परिस्थिति में ये सेम ही रहता है। उदाहरण के लिए अगर मेरे सामने कोई घटना शाम 5:00 बजे घटती है तो ब्रह्मांड में हर किसी के लिए भी वह घटना शाम 5:00 बजे ही घटनी चाहिए। पर क्या वाकई में ऐसा होता है, आइए इसकी पड़ताल करते हैं। मान लीजिए कि एक बम ब्लास्ट होता है। दो अलग-अलग लोग उस बम ब्लास्ट से 10 लाइट सेकंड और 20 लाइट सेकंड दूर मौजूद है।
उस एक्सप्लोजन से निकले लाइट को पहले आदमी तक पहुंचने में 10 सेकंड लगेगा। जबकि दूसरे आदमी तक उसी लाइट को पहुंचने में 20 सेकंड का समय लगेगा। अगर पहले आदमी से आप पूछें कि बम ब्लास्ट कब हुआ था तो वह बोलेगा 10 सेकंड पहले। वही सेम क्वेश्चन अगर अब दूसरे आदमी से करें तो वह बोलेगा 20 सेकंड पहले। तो दोनों में से कौन सही कह रहा है? दरअसल दोनों ही सही कह रहे हैं। पर अगर टाइम अप्सलूट है तो ऐसा मुमकिन ही नहीं हो सकता था। अगर टाइम एप्स लूट होता तो दोनो के लिए एक्सप्लोजन एक साथ ही हुआ होता और दोनों ने एक ही समय उस एक्सप्लोजन को देखा होता। पर क्योंकि ऐसा नहीं हुआ हम यह कह सकते हैं कि टाइम एब्सोल्यूट नहीं बल्कि रिलेटिव होता है और इसका गुजारना रेफरेंस फ्रेम पर डिपेंड करता है। जैसा कि मैंने पहले ही बताया, अगर आप किसी ऐसे यान में यात्रा कर रहे हो जिसकी रफ्तार लाइट की रफ्तार के आसपास हो तो आपके लिए समय बाकी लोगों के मुकाबले धीमा गुजरेगा, उसी तरह अगर आप किसी ऐसे फील्ड में हो जहां ग्रेविटी काफी ज्यादा हो तो भी समय आपके लिए बाकी लोगों के मुकाबले धीमा गुजरेगा। इसे टाइम डिलेशन कहते हैं। ऐसा कैसे और क्यों होता है यह हम अगले एपिसोड में विस्तार से समझेंगे। फिलहाल आप यह जानिए कि ये एकमात्र कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक सच है जिसे कई बार वेरीफाई भी किया जा चुका है। आइए जानते हैं इनमें से कुछ एक्सपेरिमेंट के बारे में। दो एटॉमिक क्लॉक के टाइम को सिंक्रोनाइज करने के बादएक को पृथ्वी पर ही रखा गया जबकि दूसरे को पृथ्वी का चक्कर लगाने वाले उपग्रह में डाल दिया गया।कुछ दिनों बाद जब दोनों क्लॉक्स के टाइम को मिलाया गया तो यह पता चला की उपग्रह पर मौजूद घड़ी का समय पृथ्वी पर मौजूद घड़ी के मुकाबले कुछ नैनो सेकंड ज्यादा था। ये साफ इस बात को दर्शाता है कि पृथ्वी के ग्रेविटी फील्ड के कारण इसकी सतह पर मौजूद क्लॉक के लिए समय कुछ नैनो सेकंड धीमा गुजरा। अगर हाई स्पीड के कारण होने वाले टाइम डिलेशन और लेंथ कांट्रेक्शन की बात करें तो इसे भी लार्ज हैड्रन कोलाइडर में एक्सपेरिमेंट के दौरान हम वेरीफाई कर चुके हैं।दरअसल, इसमें पार्टिकल की स्पीड लाइट के स्पीड का 99.9% होता है। अब तक हम यह जान चुके हैं कि टाइम रिलेटिव होता है जिसके कारण ब्रह्मांड में ही अलग-अलग जगहों और अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग गति से गुजर सकता है। चलिए अब यह जानते हैं कि ब्लैक होल के नजदीक समय के गुजरने की गति धीमी क्यों हो जाती है। इसे समझने के लिए आपको पहले ग्रेविटी की समझ होनी चाहिए तो चलिए पहले इसे समझते हैं। आइंस्टाइन ने हमें बताया कि स्पेस और टाइम दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसे 4 डाइमेंशनल स्पेसटाइम कहते हैं। स्पेस टाइम में मौजूद हर वस्तु अपने साइज के हिसाब से कर्व करती है। अगर कोई वस्तु ज्यादा बड़ी है तो वह space-time को ज्यादा कर्व करेगी और अगर छोटी है तो इसे कम कर्व करेगी। इसे समझने के लिए आप एक चादर का उदाहरण ले सकते हैं। चादर को space-time मान लीजिए। अब अगर एक बड़ा बोल पर रखें तो चादर अंदर की ओर थोड़ा धस जाएगा। अगर छोटा बोल भी चादर को थोड़ा अंदर तो जरूर धसाएगा पर इसका इफेक्ट बड़े बॉल के मुकाबले काफी कम होगा। क्योंकि बड़े बॉल ने चादर को ज्यादा अंदर की ओर धसा दिया है छोटा बोल भी उसकी ओर खींचने लगेगा। इसे हम ग्रेविटी यानी कि गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। इस उदाहरण में जो बड़ा बॉल है उसे आप सूर्य मान लीजिए और छोटे बॉल को हमारी पृथ्वी तो आप समझ जाएंगे कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर क्यों लगाती है। आप में से कई लोग यह सोच रहे होंगे कि अगर बड़ा बोल छोटे बोल को अपनी ओर खींचता है तो पृथ्वी को तो सूर्य से टकरा जाना चाहिए ना कि इसका चक्कर लगाना चाहिए। दरअसल पृथ्वी चक्कर इसलिए लगाती रहती है क्योंकि इसने भी space-time को थोड़ा विकृत किया है जिसके कारण इसका बैलेंस बना रहता है। इस वीडियो से आप इस बात को समझ सकते हैं।इसका मतलब यह हुआ कि बड़े मास या डेंसिटी वाला खगोलीय पिंड space-time को ज्यादा वार्प करेगा जिसके कारण उसकी ग्रेविटी ज्यादा होगी। इसी को अगर दूसरे शब्दों में कहें तो अगर किसी खगोलीय पिंड की ग्रेविटी ज्यादा होगी तो space-time को ज्यादा वार्प करेगा। अगर ब्लैक होल की बात करें तो इसकी ग्रेविटी इतनी ज्यादा होती है कि लाइट भी इस से बाहर नहीं निकल पाती।दूसरे शब्दों में कहें तो ब्लैक होल स्पेसटाइम को काफी ज्यादा वार्प करते हैं। पर इससे टाइम को ऐसा क्यों पड़ता है इसे समझने के लिए स्पीड का इक्वेशन लेते हैं।इसे आप सबने स्कूल में कभी ना कभी जरूर पढ़ा होगा। हम जानते हैं कि स्पीड इक्वल टू डिस्टेंस बाय टाइम होता है। इस इक्वेशन में पहले बात करते हैं स्पीड की तो यह लाइट की स्पीड होगी। हम जानते हैं कि लाइट्स पूरे ब्रह्मांड में एक सीमित गति से ही चलती है जो कि 3000000 किलोमीटर प्रति सेकंड है। पर इस उदाहरण को आसान बनाने के लिए हम यह मान लेते हैं कि असीमित गति 2 किलोमीटर प्रति सेकंड है। क्योंकि यह स्पीड फिक्स्ड है यह कभी चेंज नहीं होगी। अब आते हैं डिस्टेंस पर। मान लीजिए नॉर्मल स्पेस टाइम में A और B के बीच की दूरी 16 किलोमीटर है। क्योंकि स्पीड हमें पहले से ही पता है जो कि 2 किलोमीटर प्रति सेकंड है तो टाइम हम आसानी से निकाल सकते हैं। इस केस में टाइम आएगा 8 सेकंड। अब अगर ब्लैक होल के नजदीक मौजूद स्पेस टाइम की बात करें तो वार्प होने की वजह से A और B के बीच की दूरी पहले से भी बढ़ जाएगी। मान लीजिए यह दूरी बढ़ कर 20 किलोमीटर हो जाती है, जोकि स्पीड हमेशा फिक्स है तो यह अभी भी 2 किलोमीटर प्रति सेकंड ही रहेगा। इस केस में अगर हम टाइम निकालें तो यह आएगा 10 सेकंड।जैसा कि आप देख सकते हैं पहले केस में A से B तक जाने में केवल 8 सेकंड लग रहे थे, जबकि अब ब्लैक होल के केस में A से B तक जाने में 10 सेकंड लग रहे हैं। यानी कि समय धीमा हो गया है। यह मात्र एक साधारण उदाहरण था। अगर असली टाइम डिलेशन और लेंथ कांट्रेक्शन इक्वेशन की बात करें तो यह कुछ ऐसा है। आपमें से कुछ लोगों ने यह भी कमेंट किया था कि आइंस्टाइन का स्पेस टाइम का कांसेप्ट ही गलत है। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं आइंस्टाइन ने अपने space-time के मॉडल के आधार पर ये प्रेडिक्ट किया था कि बड़े खगोलीय पिंड space-time को विकृत करते हैं जिसके कारण लाइट भी जब उस फील्ड गुजराती है तो वह भी बेंड हो जाती है जिसके कारण उसका रास्ता भी बदल जाता है। आज इस बात को ग्रेविटेशनल लेंसिंग फेनोमेना ने साबित भी कर दिया है।यानी कि आइंस्टाइन का स्पेस टाइम का कॉन्सेप्ट गलत नहीं है। आशा करता हूं कि अब तक आप समझ चुके होंगे कि ब्लैक होल के नजदीक समय धीमा क्यों हो जाता है। दोस्तों टाइम डिलेशन और लेंथ कांट्रेक्शन को हम दूसरे एपिसोड में विस्तार से समझेंगे। आज के इस एपिसोड में बस इतना ही।आशा करता हूं कि यह एपिसोड आपको पसंद आया होगा। अगर आता है तो शेयर करना ना भूले। अगर आप इस वेबसाईट तो इसे सब्सक्राइब/बुकमार्क जरूर करें। दोस्तों मिलते हैं विज्ञान के एक और दिलचस्प टॉपिक के साथ अगले एपिसोड में। तब तक के लिए नमस्ते।















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